We have news updates @ news center
TopBottom

Monday, October 18, 2010

कभी लगती थी भीड़, रहता था इंतजार अब वजूद को बचाने की जद्दोजहद में लगी बाड़ीवाली रामलीला

कभी लोगों के मनोरंजन का एकमात्र जरिया रही रामलीला अब दर्शकों की उपेक्षा झेल रही है। करीब आधी शताब्दी पूर्व शुरू हुई कस्बे की बाड़ीवाली रामलीला भी कुछ इसी दौर से गुजर रही है। एक समय था जब रामलीला को देखने के लिए दर्शकों की भीड़ उमड़ती थी। 1951 में श्रीराम नवयुवक विजय नाट्य परिषद के नाम से बाड़ी वाली रामलीला क्षेत्र में प्रसिद्ध थी। लेकिन आज वह अपने वजूद को बचाने की जद्दोजहद में लगी है। यही नहीं श्रीराम-कृष्ण मरुधरा संघरवाली, गणेश बाल पच्चीसियों की, नवयुवक कला मंदिर(सोमानियों के नोहरे में), सनातनधर्म कोठड़ी वाली रामलीलाओं को लोग देर रात तक देखते थे।

करीब दो दशक पूर्व रामलीलाओं का अधिक महत्व था। लेकिन अब स्थिति यह है कि बाड़ीवाली रामलीला को छोड़कर बाकी सारी रामलीलाएं अतीत के पन्नों में लुप्त हो गई। वर्षों से रावण की भूमिका अदा कर रहे नारायण छिंपा कहते हैं कि टेलीविजन और मोबाइल ने रामलीलाओं का भट्टा ही बैठा दिया है। समय के साथ-साथ मनोरंजन के तरीके में भी बदलाव आ गया है।

हनुमान का किरदार निभा चुके वयोवृद्ध कलाकार संतोष तिवाड़ी के अनुसार एक कलाकार में वो काबिलियत आवश्यक है। जिसके बल पर दर्शक खीचें चले आएं। किशोरीलाल पारीक कहते हैं कि एक समय था जब लोग रामलीला देखने के लिए ऊंटगाड़ों पर सवार होकर गांवों से आते थे। लेकिन अब तो दर्शक ही लालायित नहीं है। किशन चाचाण की नजर में रामलीला एक ऐसा धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें लगातार 16 दिन प्रत्येक कलाकार व इससे जुड़ा व्यक्ति आहूति देता है ताकि उसका आनन्द लिया जा सके। लक्ष्मण की भूमिका अदा कर दर्शकों की पसंद बने प्रेम मित्रुका अपने दर्द को कुछ यूं बयां करते हैं  'जब से कला के कद्रदान घटे हैं  तब से रामलीलाओं के बुरे दिन शुरू हो गए। मित्रुका के अनुसार आज कलाकारों की हौसला अफजाई नहीं बल्कि उनकी टांग खिंचाई होती है। इससे वे मानसिक अवसाद से ग्रस्त रहते हैं। कैकेयी, मंथरा, भरत, विभीषण सहित कई किरदार निभाने वाले महेंद्र भाटी के अनुसार रामलीलाएं होने से मनोरंजन ही नहीं ज्ञान भी बढ़ता था। तभी कई जगहों पर वंृदावन से कलाकार बुलाकर रामलीलाओं का मंचन करवाया जाता है। पुराने कलाकारों के अनुसार आपाधापी भरी जिंदगी, भौतिकता के पहियों पर दौड़ते व्यक्ति के पास संस्कार व परंपराओं के लिए समय नहीं है। वर्तमान में हावी हो चुकी टेलीविजन और सिनेमा क्रांति से नई पीढ़ी क्या सीख रही हैं। ये किसी से छुपा नहीं है।

ये हैं ओल्ड इज गोल्ड

गुजरे वक्त के कलाकारों की छाप आज भी दर्शकों के जेहन में बरकरार है। इनमें रावण की भूमिका डॉ. इंद्र कुमार तिवारी, दशरथ की वीरभानसिंह सुखीजा, बाली व रावण, संतोष तिवाड़ी (गुरू) परशुराम, हनुमान के अलावा बृजलाल पारीक, संतलाल तिवाड़ी, शंकर व्यास, तौळाराम पांडिया, स्व. मोडूराम शर्मा, काशीनाथ जोशी, पटवर्धन जोशी, भंवरलाल जोशी आदि गुजरे दौर के हीरे हैं। इनकी विरासत को अब पूनम सैनी, महावीर प्रसाद पांडिया, राजू पारीक, विष्णु मित्रुका, श्याम सुंदर मथैरण, बाबुलाल सोनी, दिनेश भामा, मालचंद जोशी, रवि गौड़, गिरधारी लाल व्यास, विकास सोनी व दीपक भाटी जैसे अनेक युवा कलाकार संजोए हुए है ।

रामलीला की धुरी थे कामेडियन

रामलीला की बात चले और कामेडियन का जिक्र न हो ऐसा मुमकिन नहीं। हंसी ठिठोली से दर्शकों को लोट-पोट कर देने वाले हास्य कलाकारों (कामेडियन) की बदौलत रामलीला में देर रात तक भीड़ रहती थी। प्रकाश दायमा, नंदलाल तंवर व बाबूलाल सैनी के मंच पर आते ही पूरा रामलीला ग्राउंड तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठता था। शुरू से लेकर अंत तक रामलीला के दृश्यों का लोग बेसब्री से इंतजार करते थे। माणकचंद सोनी, मालचंद पांडिया व नंदलाल खाती भी अपने जमाने के धुरंधर कामेडियन थे।

No comments:

Post a Comment

TagLine